गीत

गीत    

 

विरह गीत मत गाओ साथी, 

नयन  हमारे  बरस  पड़ेंगे  l

 

तुमने ऐसा दर्द सुनाया, 

         कांप गई यह मेरी काया l 

अपनी भी तो यही दशा है  ,

      कोहरा कष्टों का ही छाया  l l 

 

अब मत और सुनाओ साथी ,

आंसू रोके   से न   रुकेंगे  ,

विरह गीत मत गाओ साथी  ,

नयन हमारे बरस पड़ेंगे  ll 

 

जाने  कितनी  रातें बीती , 

  और दिनों का किया न लेखा l

 जीवन भर था आस लगाए, 

   फिर भी सुख का सूर्य न देखा  ll

 

मत घावों की घटा उठाओ , 

 धैर्य बांध  सब टूट पड़ेंगे l

विरह गीत मत गाओ साथी  ,

नयन  हमारे  बरस  पड़ेंगे ll

 

मेरी  तेरी   कथा   एक है , 

       फिर क्यों बीती दोहराते हो ,

अरे बात तो सुनो  हमारी  l

      क्यों कर विनती ठुकराते हो l l

 

जग में दर्द न बांटो साथी ,

अपने ही सब हंसी करेंगे  

विरह गीत मत गाओ साथी , 

नयन हमारे बरस पड़ेंगे  ll

 

कौन हुआ कब यहां किसी का, 

किस पर अपनी आस लगाएं l

 

 अपना जीवन जिए स्वयं ही ,

      खुद ही अपनी लाश उठाएं ll

 

अब मत देर लगाओ साथी ,

चलो कहीं हम और चलेंगे  ,

विरह गीत मत गाओ साथी ,

नयन  हमारे  बरस पड़ेंगे l l

 

 डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय  गांधीगांव ,करछना ,प्रयागराज 

212301 उत्तर प्रदेश